वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है
बृजराज सिंह
60-70 का दषक भारतीय इतिहास में अभूतपूर्व सक्रियता एवं बौद्विक प्रतिरोध का दौर था। यथास्थितिवाद से विरोध एवं हाषिए के लोगों का केन्द्र के प्रति विद्रोह था। दलित, “ाोशित, पीड़ित की आवाज बुलंद होने का समय था। इसी दौर के प्रमुख कथाकार हैं मिथिलेष्वर। आज के समय में भी मिथिलेष्वर सक्रिय रचनाकार हैं। उनका एक उपन्यास ‘माटी कहे कुम्हार से’ तथा आत्मकथा ‘पानी बीच मीन पियासी’ हाल ही में प्रकाषित हुआ है, जो काफी लोक प्रिय है। ‘माटी कहे कुम्हार से’ की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बीस से ज्यादा समीक्षाएं प्रकाषित हो चुकी हैं। इधर मिथिलेष्वर की पुरस्कृत कहानियों का एक संग्रह ‘मिथिलेष्वर की पुरस्कृत कहानियाँ’ नाम से इन्द्रप्रस्थ प्रकाषन, दिल्ली से प्रकाषित हुआ है। इसमें मिथिलेष्वर की ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार,’ ‘यषपाल पुरस्कार’ एवं ‘अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार’ से पुरस्कृत कुल 29 कहानियाँ संकलित हैं, जो सत्तर के दषक में धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सारिका, कहानी, मनोरमा, प्रगतिषील समाज, आदि में प्रकाषित हुर्इ हैं। इसके ठीक पहले हिन्दी कथा साहित्य में नर्इ कहानी का दौर चल रहा था, जिसमें मध्यवर्ग एवं वैयाक्तिक अन्तर्द्वन्द्व की कथाएं कही जा रही थीं। 70 के आस-पास साहित्य में आजादी से मोहभंग की अभिव्यक्ति “ाुरू हो चुकी थी इसमें साहित्यकारों ने दलित “ाोशित-पीड़ित जनता की ओर से लिखना “ाुरू किया। आम आदमी के जीवन में कोर्इ विषेश परिवर्तन नहीं दीख रहा था। वह अभी भी उन्हीं “ाोशण एवं भूखमरी की समस्याओं से जूझ रहा था। राजनीति से लोगों का मोहभंग हो रहा था। 75 तक आते-आते (इमरजेंसी का समय) तो रही-सही उम्मीद भी खत्म होने लगी थी। ऐसे समय में कुछ कहानीकारों ने हाषिए के लोगों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। उनके दु:ख दर्द उनके “ाोशण की कहानी पूरी संवेदना के साथ व्यक्त करने की कोषिष की। इसमें मिथिलेष्वर एक अग्रणी कथाकार के रूप में हमारे सामने आते हैं। वे अब तक के दलित, “ाोशित समाज की अभिव्यक्ति उन्हीं की बोली बानी का पुट लेकर कहने की कोषिष करते हैं। संग्रह की पहली, दूसरी कहानी ‘नरेष बहू’ एवं ‘आखिरी बार’ में गरीब परिवार की स्त्री की कहानी कही गयी है। ‘नरेष बहू’ में जहाँ नरेष की पत्नी उसकी मारपीट से आज़िज़ आकर दूसरे गांव भाग आती है, तो उस गांव के लोगों मे उसके पाने की लालसा में मारपीट “ाुरू हो जाती है, जिसे देखो वही लार टपका रहा होता है। वह पति से अलग होने के बाद भी उसके नाम से अलग नहीं हो पायी। वहीं ‘आखिरी बार’ में नैना को परिवार चलाने के लिए देह धंधा करना पड़ता है। मिथिलेष्वर ग्रामीण एवं दलित समाज की स्त्रियों के “ाोशण एवं उनकी बेबसी को पूरी र्इमानदारी एवं संवेदना के साथ व्यक्त करते हैं।
एक कहानी है ‘बन्द रास्तों के बीच’। यह ‘कहानी’ पत्रिका के अगस्त 1976 वाले अंक में प्रकाषित हुर्इ थी। इसमें एक निम्न तबके का मजदूर परिवार है जो गांव में बनिहारी एवं चरवाही करके अपना पेट पालता है। आजादी से मोह भंग की जो बात उपर मैंने कही है उसे इस कहानी में देखा जा सकता है। आजादी तो मिल गयी, विकास की योजनाएं भी चल रही थीं। गावों पर विषेश ध्यान भी था। पर वह आजादी किसकी थी, विकास किसका था? यह न तब समझ में आता था, न अब समझ में आता है। जगेसर के गांव में पक्की सड़क बन रही है। पूरे गांव में सड़क किनारे सिर्फ उसी की झोपड़ी है। उसने सोचा कि सड़क बन जाने के बाद एक छोटी सी चाय-पान की दुकान खोल लेगा। अब उसे और उसके परिवार को दूसरे की चरवाही बनिहारी, नहीं करनी पड़ेगी। उसकी लाष बन गयी जिन्दगी में अचानक उत्साह आ जाता है। गांव में उसका मान-सम्मान बढ़ जाता है। सड़क तो बन गयी पर दुकान खुलने से पहले ही उसकी झोपड़ी ढहा दी गयी। यह बताकर की सड़क किनारे की जमीन सरकारी है। अब वह सचमुच एक जिन्दा लाष बन जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि विकास के नाम पर सरकारें जो खेल खेल रही हैं उससे किसी आम आदमी के जीवन में कोर्इ खास परिवर्तन होता नहीं दिखार्इ दे रहा है। विकास के नाम पर आज भी किसानों की जमीन छीन ली जा रही है। विरोध करने पर प्रताड़ित किया जा रहा है। ‘रात अभी बाकी’ है कहानी का निझावन सोचता है- ‘‘किस काया पलट की आषा की थी उसने ? कैसी आजादी के सपने संजोए थे? क्या वह सब कुछ मात्र दिखावा था, भ्रम और छलावा ही था? क्या उतनी बड़ी आजादी सिर्फ चन्द लोगों को कुर्सी से चिपकाने भर तक ही थी।’’ निझावन को साफ लगता है कि ‘‘कोर्इ अन्तर नहीं रह गया है। तब और अब में’’। देष और राजनीति की बातें जिन्हें निझावन कभी चाव से सुनता था, अब फालतू वाहियात लगती हैं। उसे लगता है कि उन बातों में कुछ नहीं रखा है। यह राजनीति से मोहभंग है। मिथिलेष्वर की कहानियों में “ाोशण के विभिन्न रूप दिखार्इ पड़ते हैं। लगता है जैसे “ाोशण के विभिन्न रूपों को वे बेपर्द कर रहे हैं। ‘न चाहते हुए भी’ कहानी का मदारी इस बात से चिन्तित है कि “ाहर अब गांव तक पहुँच रहा है। दिन भर मदारी दिखाने के बाद भी भर पेट खाना जुटा पाना उसके लिए मुष्किल हो गया है। गरीबी का फायदा उठाकर गाँव के लोग उनकी स्त्रियों एवं लड़कियोंं से बलात्कार करते हैं। बदले में कुछ फटे पुराने कपड़े एवं कुछ आनाज दे देते हैं। उनकी बेबसी इस हद तक है कि जान कर भी वे अपनी स्त्रियों को गांव में जाने से रोक नहीं सकते। अपनी बेटी के बलात्कार का बदला भी लेना चाहता है तो उसे मार पड़ती है और वह एक बार फिर चुप लगा जाता है। इसे अपनी नियति मानकर।
यषपाल पुरस्कार से पुरस्कृत कहानियों में ‘मेघना का निर्णय’ कहानी महत्वपूर्ण है। यह कहानी ग्रामीण वर्ग संघर्श को चित्रित करती है। मेघना एक मजदूर है, जो गांव छोड़कर “ाहर में मजदूरी करने लगता है। उसके साथ और भी नवयुवक “ाहर जाने लगते हैं। “ाहर में बेगार नहीं करना पड़ता । उसके गांव के मजदूरों ने उसे अपना नेता बना लिया है। वाजिब मजदूरी पाने के लिए उसे लड़ार्इ लड़नी पड़ती है। इसमें उसके मजदूर साथी पूरी र्इमानदारी से उसका साथ देते हैं। एक बार जब वह अपनी मजदूरी पाने के लिए “ाहर में लड़ार्इ कर बैठा तो गांव के बाबू लोग उसका साथ न देकर “ाहर के रेल बाबू के साथ हो गये। गांव के बाबुओं को भी अपनी खुन्नस निकालने का मौका मिल गया। मेघना की वजह से अब कोर्इ गांव में बेगार नहीं करता। यह मजदूरो के एक जुट होने और “ाोशण के प्रति उनके विद्रोह की कहानी है। मेघना कहता है-’’हमें जान की बाजी लगाकर भी उनको जवाब देना पड़ेगा, नहीं तो वे हर बार इसी तरह “ाहर के मालिकों से मिलकर हमें दबाते रहेंगे।’’ ‘जिन्दगी का एक दिन’ कहानी सिर्फ रघुवीर लाल की कहानी नहीं हैं। वह हर उस व्यक्ति की कहानी है जो रघुवीर लाल जैसा जीवन जीने को अभिषप्त है। ‘छोटे “ाहर के लोग’ कहानी में मेला देखने आयी युवती अपने परिवार से बिछड़ने पर भीड़ के लिए मनोरंजन का विशय बन जाती है। ‘गृह प्रवेष’ कहानी में कथनी और करनी के भेद पर टिप्पणी की गयी है। कहानी में प्रगतिषील लेखक द्वारा गृह प्रवेष कराये बिना घर में घुस जाने की कहानी है। अंध विष्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उसे निकाल पाना मुष्किल है। हर प्रतिकूल घटना गृह-प्रवेष के खाते में डाल दी जाती। उसमें एक पात्र कहता है- ‘‘अभी इस देष में विचार और व्यवहार को मिलाने का माहौल नहीं आ पाया है। अच्छा रहेगा, आप रचनाओं में ही प्रगतिषील रहें। जिन्दगी की प्रगतिषीलता बहुत मंहगी पड़ेगी।’’ ‘कसूर’ कहानी में एक बेरोजगार युवक की बेबसी है। जिसके पास अपनी बिमार बेटी की दवा के नाम पर चार दाने मूंगफली हैं, उसे पुलिस डकैती में “ाामिल मानती है। ‘रात’ कहानी इस सग्रह की उल्लेखनीय कहानी है। बाप के मर जाने के बाद धुनिया और धुरुपा जोगिन्दर सिंह का कर्जा उतार रहे हैं। जहाँ जोगिन्दर झुनिया के साथ यौन “ाोशण करता है वहीं जोगिन्दर की बहन नीरू, धुरुपा का “ाारीरिक “ाोशण करती है। “ाोशण की इस दोहरी मार से दोनो भार्इ-बहन स्तब्ध हैं। अखिल भरतीय मुक्तिबोध पुरस्कार से पुरस्कृत कहानियों में ‘अनुभवहीन’ एक बेरोजगार युवक की कहानी है। ‘नपुंसक समझौते’ में एक आम आदमी के बेबसी की कहानी है जिसे जीवन में हर पल समझौतें करने पड़ते हैं। छोटे भार्इ को परीक्षा देने जानी है। चावल बेचकर 150 रूपये जुटाता है। भार्इ के निकलने से पहले सिचार्इ विभाग के लोग टैक्स वसूलने चले आते हैं और रूपये लेकर चले जाते हैं। इस ज़हालत की जिंदगी से निकलने का स्वप्न भी अधूरा ही रह जाता है। वह याद करता है कि उसे इस तरह के कितने ही समझौते करने पडे़ हैं। ‘एक और हत्या’ एक बंधुआ मजदूर की कहानी है। ‘बीच रास्ते में’ कहानी विषेश उल्लेखनीय है। ऐसे दो भाइयों की कहानी है, जिनके बीच सिर्फ एक ही धोती कुर्ता है। जिसे सुबह कहीं जाना रहता है वह रात भर सोता नहीं है कि दूसरा जल्दी उठकर उसे पहन न ले। कफन के घीसू माधव इस लिए बुधिया को देखने नहीं जाते कि दूसरा कहीं सारा आलू खा न जाए। यह सिर्फ उन भाइयो की कहानी नही है बल्कि उस सभ्य समाज की भी कहानी है जिसमें बिना कपड़ों के आदमी को पागल कहकर मार दिया जाता है। अभाव की जिंदगी का ऐसा चित्रण अन्यत्र देखने को नही मिलता। ‘विरासत’ कहानी में अंधविस्वास एवं भूत-प्रेत की झाड-फूंक से ग्रसित एक गांव है। ‘पहली घटना’ एक विधवा लड़की के प्रेम की कहानी है। घर वालो को जब इस बात का पता चलता है तो वे उसे ठिकाने लगाने की तैयारी करते हैं। वह पूरे साहस के साथ घर वालों का विरोध करती है और विपिन से “ाादी करती है।
मिथिलेष्वर का यह कहानी संग्रह कहानी इतिहास के मुख्य दौर हमारा परिचय कराता है। मिथिलेष्वर ने अपनी कहानियों में ग्रामीण जीवन की विभिशिकाओं और उसके यथार्थ को बड़ी गहरी संवेदना के साथ चित्रित किया है। ग्रामीण मनोजगत एवं सामाजिक विद्रोह की दृश्टि से यह कहानी संग्रह विषेश उल्लेखनीय है। इन कहानियों का ग्रामीण परिवेश अपने सभी विसंगतियों, विद्रूपताओं एवं अंतर्विरोधों के साथ उपस्थित है। मिथिलेष्वर सिर्फ गांव की रोमानियत को ही नहीं व्यक्त करते, उसके यथार्थ से हमारा परिचय भी कराते हैं। कुछ ढकने-तोपने की सायास कोषिष नही करते। कमलेष्वर ने कहा है-’’मिथिलेष्वर ने अपनी कहानियो के माध्यम से गांव की समस्याओं और वहाँ के नये वर्ग-संघर्श को अभिव्यक्ति दी है। गावों में बसे लोगों की तकलीफ को बहुत करीब से उन्होंने देखा और भोगा है। उनके पात्र आर्थिक एवं सांस्कारिक विवषताओं में छटपटाते हुए लोग हैं।’’ मिथिलेष्वर की ये कहानियाँ एक बेहतर समाज निर्माण का सवप्न हैं जिसे ग़ालिब ने कुछ यूँ कहा है-
घर में था क्या कि तेरा ग़म उसे ग़ारत करता
वो जो रखते थे हम इक हसरत-ए-तामीर सो है।
बृजराज सिंह
H 2/3 वी.डी.ए. फ्लैट्स
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