आजादी
अब हमारी आजादी बूढ़ी हो चली है
इसने अपने साठ साल पूरे कर लिए
यह सठिया गयी है
इसके गाल पिचक गए
और बाल पक गए हैं
कितने तो सपने पूरे करने थे
पर इसने अपने हाथ खड़े कर दिये
इसकी सांस फूल रही है
इसके होने का कुछ मतलब था
इसको लाने का कुछ मकसद था
अपने इस्तेमाल होने के बारे में कुछ नहीं कर सकी
गलत हाथों में पड़ने से हमें ही रोकना था
हम नहीं कर पाये
इसके जन्म से ही
इसके हाने का मतलब खोजते रहे
और यह बूढ़ी हो गयी
अब इसे बदलना होगा।
भावुकता
हमें बचपन से बताया गया
रोना हमारा काम नहीं
रोना स्त्री होना है
जब कभी रोने का अवसर आया
मर्दानगी की याद दिलाकर चुप करा दिया गया
मर्द को दर्द नहीं होता
समझाया गया
पर दर्द तो आदमी औरत चीन्हकर नहीं आता
उसे तो आना था
वह आया भी
बस रो नहीं सके
भावुकता अच्छी चीज नहीं
भावुक होना कमजोर होना है
लड़िकयां भावुक होती हैं
बताकर लज्जित किया गया
पर साहब मैं तो भावुक हूँ
और हूँ तो हूँ
फिर भी कर्इ बार रूंधे गले को खखारकर पी जाना पड़ा।
इराकी बच्चे बाजार में
आज फिर लौट आया खाली हाथ बाजार से
चाहता तो यही हूँ
कि मैं भी तुम्हारे लम्बे काले बालों के लिए
बाजार से “ौम्पू ले आऊँ
खुषियों की डिलेवरी करने वालों से पिज्ज़ा
बच्चे के लिए रिमोट कार
आखिर कौन नहीं चाहता खुषियाँ
चाहता तो मैं भी हूँ
कि जाऊँ बाजार, ले आऊँ
चेहरे की झुर्रियां मिटाने वाली क्रीम
चाहता तो मैं भी यही हूँ
कि बाल तुम्हारे रेषमी और
त्वचा विज्ञापन वाली लड़की सी दमकती रहे
पर क्या करुँ
कि इसके लिए जाना पड़ेगा बाजार
जहाँ मुझे सबसे अधिक डर लगता है
मैं सच कह रहा हूँ
भरोसा करो मेरा
मै हिम्मत जुटा कर गया था बाजार
कि ले आऊँगा तुम्हारे लिए परफ्यूम
और अपने लिए बालों का तेल
कि मुझे फिर चारों तरफ दिखायी देने लगे
इराकी़ बच्चे
हर दुकान. हर सड़क. टेलीविजन और हर होर्डिग्स में
बोतलों से झांकते इराकी बच्चे
किसी की एक आंख गायब थी
किसी का एक पैर
किसी का आधा “ारीर
सड़क पर इराकी बच्चों के सिर पड़े हैं
किसी का सिर्फ एक हाथ हिल रहा था
और कह रहा था।
मुझे बचा लो
मेरे न चाहने पर भी, मेरी नजर
उस ओर चली ही जाती है
मुझे माफ करना।
स्टेषन पर बच्चे
(1)
आज राजधनी लेट है
जोर से भूख लगी है
राजधानी से बड़े लोगों का
आना जाना रहता है
बड़े लोग जिनके पास
फेंकने के लिए बड़ी-बड़ी चीजें होती हैं
समय से होती तो
पेट भर सो लिए होते
पर आज देर से आएगी
ये स्साले लोकल वाले
लार्इ भी नहीं फेकते
राजधानी के आते ही दौड़ पड़े
अपना-अपना थैला लेकर
किसी ने फेकी रोटी, किसी ने सब्जी
किसी ने देसी घी की पूड़ियाँ फेकी हैं चार
राजधानी चली गयी
इकठ्ठा हो सब बाँट लिया
खा लिया, जा रहे हैं सोने
पहले ही देर हो गयी है
भला हो इन राजधानी वालों का
ये फेकें न, तो हम खाएंगे क्या ?
(2)
स्टेषन के सबसे अंतिम प्लेटफार्म पर
सबसे अंत में, भीड़ से अलग
अपने थैले और एल्युमीनियम के कटोरे के साथ
वह बैठा है, खुले आसमान के नीचे
ऊपर देख रहा है एकटक
जाने क्या सोच रहा है
आसमान विल्कुल साफ है
खूब तारे उगे हैं
चन्द्रमा बड़ा दिखार्इ दे रहा है
“ाायद सोच रहा है
चाँद को भेजा है उसकी माँ ने
थपकी दे सुलाने के लिए
हवाओं से बाप ने भेजी है लोरी
अभी सब तारे सिक्के बन
गिर जाएगें उसके कटोरे में
सुबह से उसे भीख नहीं मांगना पड़ेगा।
प्यार की निषानी
तुम्हारे दातों में फंसे पालक की तरह
दुनिया की नजरों में गड़ रही है
तुम्हारे प्यार की अंतिम निषानी
बहुत-बहुत मुष्किल है
उसे बचा कर रखना
और
उससे भी मुष्किल है
उसे एकटक देखते रहना
क्योंकि
दुनिया के सारे नैतिक मूल्य उसके खिलाफ़ हैं।
बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत*
(अरूंधती राय के लिए)
देष आज़ाद है
तुम नहीं
अपनी कलम से कह दो
प्रषस्ति लिखना सीख ले
कसीदे गढ़ना तुमने, उसे नहीं सीखाया
अब जबकि लिखने का मतलब है झूठ लिखना
तब आदमी की बात न करो
आदमखोर के साथ रहना सीख लो
बड़े-बड़े गुण्डे देष की संसद चलाएंगे
बलात्कारी सड़क पर सीना ताने घूमेंगे
सच लिखने वाले जेल जाएंगे
अपना हक मांगने वाले देषद्रोही कहे जाएंगे
जन, जंगल, जमीन की बात न करो
ठेकेदारों का साथ दो
पूँजीपतियों के साथ रहो
अपनी कलम को समझाओ
उसे बताओ कि
आज़ाद देष का आज़ाद नागरिक
आज़ाद ख़्ायाल नहीं हो सकता
हमारा क्या है
हमारे लिए अपनी जान खतरे में न डालो
हम जानते हैं
तुम्हारी कलम यह नहीं कर सकती
तुम्हारे लिए लिखने का मतलब है
भूख से मर रहे आदमी के पेट की गुड़गुड़ाहट लिखना
तुम्हारे लिए लिखने का मतलब है
“ाोशित की जबान में कविता लिखना
देष की पूँजी सौ अमीरों के पास है
देष की जनता सौ गुन्डों के हाथ है
देष की बागडोर सौ चोरों के पास है
और तुम्हारा विष्वास लोकतंत्र के साथ है
यह तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है
हटना नहीं, झुकना नहीं
डरना नहीं, कलम अपनी तोड़ना नहीं
विष्वास हमारा छोड़ना नहीं
तुम्हारा लिखा रोटी है हमारे लिए
*कटते भी चलो बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत-फै़ज़
लाल
ज़िद तो अब अपनी भी यही है कि
चाहे जीवन एकरंगी हो जाय
पर सीर्फ और सीर्फ लाल रंग ही
पहनूंगा ओढ़ूंगा बिछाउंगा
क्यूबा से मंगाउंगा लाल फूलों की
नर्इ किस्म, अपने आंगन में लगाऊंगा
लाल रंग के फूल ही दूंगा उपहार में
और लाल ही लूंगा
पत्नी के जूड़े में सजाऊंगा लाल गुलाब
किताबों पर लाल जिल्द ही चढ़ाउंगा
झण्डा भी लाल डण्डा भी लाल
साथी लाल ही अपना जीवन होगा।
अब हमारी आजादी बूढ़ी हो चली है
इसने अपने साठ साल पूरे कर लिए
यह सठिया गयी है
इसके गाल पिचक गए
और बाल पक गए हैं
कितने तो सपने पूरे करने थे
पर इसने अपने हाथ खड़े कर दिये
इसकी सांस फूल रही है
इसके होने का कुछ मतलब था
इसको लाने का कुछ मकसद था
अपने इस्तेमाल होने के बारे में कुछ नहीं कर सकी
गलत हाथों में पड़ने से हमें ही रोकना था
हम नहीं कर पाये
इसके जन्म से ही
इसके हाने का मतलब खोजते रहे
और यह बूढ़ी हो गयी
अब इसे बदलना होगा।
भावुकता
हमें बचपन से बताया गया
रोना हमारा काम नहीं
रोना स्त्री होना है
जब कभी रोने का अवसर आया
मर्दानगी की याद दिलाकर चुप करा दिया गया
मर्द को दर्द नहीं होता
समझाया गया
पर दर्द तो आदमी औरत चीन्हकर नहीं आता
उसे तो आना था
वह आया भी
बस रो नहीं सके
भावुकता अच्छी चीज नहीं
भावुक होना कमजोर होना है
लड़िकयां भावुक होती हैं
बताकर लज्जित किया गया
पर साहब मैं तो भावुक हूँ
और हूँ तो हूँ
फिर भी कर्इ बार रूंधे गले को खखारकर पी जाना पड़ा।
इराकी बच्चे बाजार में
आज फिर लौट आया खाली हाथ बाजार से
चाहता तो यही हूँ
कि मैं भी तुम्हारे लम्बे काले बालों के लिए
बाजार से “ौम्पू ले आऊँ
खुषियों की डिलेवरी करने वालों से पिज्ज़ा
बच्चे के लिए रिमोट कार
आखिर कौन नहीं चाहता खुषियाँ
चाहता तो मैं भी हूँ
कि जाऊँ बाजार, ले आऊँ
चेहरे की झुर्रियां मिटाने वाली क्रीम
चाहता तो मैं भी यही हूँ
कि बाल तुम्हारे रेषमी और
त्वचा विज्ञापन वाली लड़की सी दमकती रहे
पर क्या करुँ
कि इसके लिए जाना पड़ेगा बाजार
जहाँ मुझे सबसे अधिक डर लगता है
मैं सच कह रहा हूँ
भरोसा करो मेरा
मै हिम्मत जुटा कर गया था बाजार
कि ले आऊँगा तुम्हारे लिए परफ्यूम
और अपने लिए बालों का तेल
कि मुझे फिर चारों तरफ दिखायी देने लगे
इराकी़ बच्चे
हर दुकान. हर सड़क. टेलीविजन और हर होर्डिग्स में
बोतलों से झांकते इराकी बच्चे
किसी की एक आंख गायब थी
किसी का एक पैर
किसी का आधा “ारीर
सड़क पर इराकी बच्चों के सिर पड़े हैं
किसी का सिर्फ एक हाथ हिल रहा था
और कह रहा था।
मुझे बचा लो
मेरे न चाहने पर भी, मेरी नजर
उस ओर चली ही जाती है
मुझे माफ करना।
स्टेषन पर बच्चे
(1)
आज राजधनी लेट है
जोर से भूख लगी है
राजधानी से बड़े लोगों का
आना जाना रहता है
बड़े लोग जिनके पास
फेंकने के लिए बड़ी-बड़ी चीजें होती हैं
समय से होती तो
पेट भर सो लिए होते
पर आज देर से आएगी
ये स्साले लोकल वाले
लार्इ भी नहीं फेकते
राजधानी के आते ही दौड़ पड़े
अपना-अपना थैला लेकर
किसी ने फेकी रोटी, किसी ने सब्जी
किसी ने देसी घी की पूड़ियाँ फेकी हैं चार
राजधानी चली गयी
इकठ्ठा हो सब बाँट लिया
खा लिया, जा रहे हैं सोने
पहले ही देर हो गयी है
भला हो इन राजधानी वालों का
ये फेकें न, तो हम खाएंगे क्या ?
(2)
स्टेषन के सबसे अंतिम प्लेटफार्म पर
सबसे अंत में, भीड़ से अलग
अपने थैले और एल्युमीनियम के कटोरे के साथ
वह बैठा है, खुले आसमान के नीचे
ऊपर देख रहा है एकटक
जाने क्या सोच रहा है
आसमान विल्कुल साफ है
खूब तारे उगे हैं
चन्द्रमा बड़ा दिखार्इ दे रहा है
“ाायद सोच रहा है
चाँद को भेजा है उसकी माँ ने
थपकी दे सुलाने के लिए
हवाओं से बाप ने भेजी है लोरी
अभी सब तारे सिक्के बन
गिर जाएगें उसके कटोरे में
सुबह से उसे भीख नहीं मांगना पड़ेगा।
प्यार की निषानी
तुम्हारे दातों में फंसे पालक की तरह
दुनिया की नजरों में गड़ रही है
तुम्हारे प्यार की अंतिम निषानी
बहुत-बहुत मुष्किल है
उसे बचा कर रखना
और
उससे भी मुष्किल है
उसे एकटक देखते रहना
क्योंकि
दुनिया के सारे नैतिक मूल्य उसके खिलाफ़ हैं।
बाजू भी बहुत हैं सर भी बहुत*
(अरूंधती राय के लिए)
देष आज़ाद है
तुम नहीं
अपनी कलम से कह दो
प्रषस्ति लिखना सीख ले
कसीदे गढ़ना तुमने, उसे नहीं सीखाया
अब जबकि लिखने का मतलब है झूठ लिखना
तब आदमी की बात न करो
आदमखोर के साथ रहना सीख लो
बड़े-बड़े गुण्डे देष की संसद चलाएंगे
बलात्कारी सड़क पर सीना ताने घूमेंगे
सच लिखने वाले जेल जाएंगे
अपना हक मांगने वाले देषद्रोही कहे जाएंगे
जन, जंगल, जमीन की बात न करो
ठेकेदारों का साथ दो
पूँजीपतियों के साथ रहो
अपनी कलम को समझाओ
उसे बताओ कि
आज़ाद देष का आज़ाद नागरिक
आज़ाद ख़्ायाल नहीं हो सकता
हमारा क्या है
हमारे लिए अपनी जान खतरे में न डालो
हम जानते हैं
तुम्हारी कलम यह नहीं कर सकती
तुम्हारे लिए लिखने का मतलब है
भूख से मर रहे आदमी के पेट की गुड़गुड़ाहट लिखना
तुम्हारे लिए लिखने का मतलब है
“ाोशित की जबान में कविता लिखना
देष की पूँजी सौ अमीरों के पास है
देष की जनता सौ गुन्डों के हाथ है
देष की बागडोर सौ चोरों के पास है
और तुम्हारा विष्वास लोकतंत्र के साथ है
यह तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है
हटना नहीं, झुकना नहीं
डरना नहीं, कलम अपनी तोड़ना नहीं
विष्वास हमारा छोड़ना नहीं
तुम्हारा लिखा रोटी है हमारे लिए
*कटते भी चलो बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत-फै़ज़
लाल
ज़िद तो अब अपनी भी यही है कि
चाहे जीवन एकरंगी हो जाय
पर सीर्फ और सीर्फ लाल रंग ही
पहनूंगा ओढ़ूंगा बिछाउंगा
क्यूबा से मंगाउंगा लाल फूलों की
नर्इ किस्म, अपने आंगन में लगाऊंगा
लाल रंग के फूल ही दूंगा उपहार में
और लाल ही लूंगा
पत्नी के जूड़े में सजाऊंगा लाल गुलाब
किताबों पर लाल जिल्द ही चढ़ाउंगा
झण्डा भी लाल डण्डा भी लाल
साथी लाल ही अपना जीवन होगा।
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