Wednesday, September 8, 2010

शहरयार मियाँ

भाई ! तुम्हें याद हैं शहरयार मियाँ
झकझक सफेद लूँगी-कुर्ता में
मदरसे से लौटते वक्त
बाबा से मिलने रोज आते थे
अरे वही सफदे दाढ़ी वाले शहरयार मियाँ
भाई शहरयार मियाँ
अब हमारे घर क्यों नहीं आते?
माना कि बाबा नहीं रहे
पर उन्हें यहाँ आने से किसने रोका है?
सुना है मदरसे से भी उन्हे निकाल दिया
गुजरात से उनका लड़का नहीं लौटा
तो वे इधर भी आना छोड़ दिए।


भाई ! तुम्हें याद हैं न शहरयार मियाँ
अरे वही
जिनके घर हम हमेषा ईद पर
सिवइयाँ खाने जाते थे
यह जरूर है कि अब हालात पहले जैसे नही
पर हालात तो तब भी अच्छे न थे
जब वे आते थे

भाई तुम कैसे भूल सकते हो
शहरयार मियाँ को
तुम्हे याद है, वे पिछली बार कब आए थे?
वे क्यों नहीं आते
कुछ तो बोलो

भाई ! तुमने यह ठीक कहा
वे कैसे आएं
हम भी तो नहीं जाते अब।


ब्रिजराज

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