जब भी कोई कहता है
जब कोई कहता है
अहिंसा
तब लगता है
किसी ने घुसे़ड दिया है त्रिषूल
मेरे सीने में
जब कोई कहता है
शांति
तब लगता है
उसने गाली दी है
उन हजार हाथों को
जिनकी मुठ्ठी
अपना हक मांगने के लिए उठी है
जब भी कोई कहता है
धर्म
तब बू आती है उसके मुँह से
ऐसे दांतों की जिन्हें
कभी साफ नहीं किया गया
इस तरह वह जब भी कहता है
परंपरा, संस्कार, संस्कृति
तब-तब लगता है
कि मेरे एक-एक अंग को
काट-काट कर फेक रहा है
बारी-बारी
Brijraj
No comments:
Post a Comment