Friday, June 1, 2012

दिन लद गए पद्मिनी नायिकाओं के


दिन लद गए पद्मिनी नायिकाओं के

यूँ तो वह हमेशा खड़ी ही रहती है
कहीं आती जाती नही
मानों कभी-कभार कही चली भी गयी तो
फिर आकार वहीं खड़ी हो जाती है
उसके खड़े होने का स्थान नियत है
लोगों को ऐसी आदत हो गयी है
कि वहाँ कोई और खड़ा नही होता

मेरे ड्राईंगरूम कि खिड़की से दिखती रहती है
सुबह-सुबह खिड़की का पर्दा हटाते हुए
जब हम सबसे पहले यह कहते हैं
कि सड़क किनारे के घरों में धूल बहुत आती है
तब वह मुहल्ले भर की गर्द ओढ़े हमपर मुस्कुराती है
मृगदाह की चिलचिलाती धुप में
पूस की कड़कड़ाती रात में
भादों की काली डरावनी तूफानी बारिश में
वह वहीं खड़ी रहती रहती है
शहर दक्षिणी से उठने वाली आँधियों में भी
वह ज़रा भी विचलित नही होती
और वैसे ही खड़ी रहती है बे मौसम बरसात में

वह लोगों के बहुत काम भी आती है
सड़क से गुजरता हुआ कभी कोई
अपनी कुहनी टिका सुस्ता लेता है थोड़ी देर
तो कोई पीठ टिका बतिया लेता है फोन पर
कई बच्चों के लिए श्यामपट का भी कम करती है
अपना नाम लिखने के लिए
बस ऊँगली फिराने भर से नाम उभर आता है
आई लव यू तो उसकी पूरी पीठ पर लिखा रहता है
मिसेज पाण्डेय और मिसेज पाठक तो
अलसुबह नाईटड्रेस में उसके सामने
खड़ी होकर घंटों बतियाती हैं
पर उसने किसी की बात किसी से नही कही
अपने मालिक से भी नही

मैं तो उसे बहुत पसंद करता हूँ
आज से नही उस ज़माने से जब पढ़ा था
गुनाहों का देवता
वह है उसमें, और भी कई जगह है
उसका अतीत बेहद गौरवशाली है
अपने समय की पहली पसंद हुआ करती थी वह
राजनेताओं से लेकर कवि-कथाकारों तक की

सड़क पर हर आने जाने वालों को
अपनी मटमैली कातर निगाहों से निहारती रहती है
मैं भी घर से निकलते वक्त उसे
एक नजर देख जरूर लेता हूँ
कभी-कभी लगता है
वह चल देगी मेरे साथ
और ले जायेगी उन सारी जगहों पर
जहाँ मैं चाह कार भी नही जा पाता

मेरा पता गर पूछे कोई
तो बताता हूँ कि
वहीं जहाँ खड़ी रहती है पद्मिनी! फिएट पद्मिनी
हाँ पद्मिनी नाम है उसका
दिन लद गए अब पद्मिनी नायिकाओं के